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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palसमाज मे कुछ लोग ऐसे ज़रूर होते हैं जो दूसरे को आगे जाता नही देख सकते। ये पराये ही नही अपने भी हो सकते है। लेकिन किसी भी तरह आपकी कोई न कोई कमजोरी की पकड़कर आपको नीचा दिखाने की कोशिश मे लगे रहते हैं। अगर आप काबिल हों तो ये आपकी पृष्ठभूमि पर उंगली उठाएंगे। अगर आपकी पृष्ठभूमी अच्छी है, तो आपकी काबलियत पर सवाल उठाए जाएंगे, कुछ नही तो मिला तो आपके रंगरूप का ही मज़ाक उड़ा लेंगे। क्यों,? क्योंकि आपकी सफलता इनकी हैसियत को चुनौती और इनकी नालायकी का प्रमाण है। सोचनीय यह है कि ये बदनीयत बाहुबली ही समाज की परिभाषाएं तय करते हैं। और बाकी आम लोग? कहने को हर आम आदमी आज़ाद है, लेकिन इनका विवेक शून्य है। ये अपने बुद्धि से नही बल्कि दूसरे की परिभाषाओं पर चलते है। भेड़चाल से। वहीं चरते हैं जहाँ वो चरवाहे इन्हे हाँक कर ले जाते हैं। बच्चों की क्लास हो या बड़ों का समाज, बस एक झुंड है, भेड़-बकरियों का झुंड। जो जिधर हाँक दे उस तरफ चल देते है। लेकिन भले ही ये झुंड मे रहें पर हर बकरे के दिल की बस एक ही आवाज़ है, मैं मैं मैं।
मानो नही जानो। जितनी जल्दी जानोगे उतनी जल्दी ये प्यार का भूत उतर जायेगा। जिस प्रकार नौकरी या रोज़गार मिलना आदमी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव है और उसके जीवन का साधन है, सम्मान है, उसी प्रकार भारत मे औरत के लिए शादी उसके जीवन का साधन है, सम्मान है। शादी औरत का रोज़गार है। आज भी गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों की सच्चाई यही है। इसलिए जब एक लड़का बड़ा होता है तो लोग सबसे पहले उससे उसका रोज़गार पूछते है और जब एक लड़की बड़ी होती है तो उससे उसका रिशता।
सौरभ चटर्जी
सौरभ चटर्जी का जन्म सन् 1976 मे लखनऊ मे हुआ। वाटर वार्स(जल युद्द) पर उनके निबंध को यूनाईटेड
सर्विसेज़ इन्सटिट्यूशन ऑफ इंडिया जर्नल द्वारा सन् 2019 मे दितीय पुरुस्कार मिला। उनकी अंग्रेज़ी
लघुकथा ‘फ्लाइट’ कन्टेम्पररी लिटेररी रिव्यू इंडिया मे सन् 2022 मे प्रकाशित हुई। हिंदी उनके मन का स्वर
है।
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